मनोरंजक कथाएँ >> पंचतंत्र की कहानियाँ पंचतंत्र की कहानियाँविष्णु शर्मा
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पंचतंत्र की कहानियाँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गीदड़ की कूटनीति
मधुपुर नामक जंगल में एक शेर रहता था जिसके तीन मित्र थे, जो बड़े ही स्वार्थी थे। इनमें थे, गीदड़, भेड़िया और कौआ। इन तीनों ने शेर से इसलिए मित्रता की थी कि शेर जंगल का राजा था और उससे मित्रता होने से कोई शत्रु उनकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देख सकता था। यही कारण था कि वे हर समय शेर की जी-हुजूरी और चापलूसी किया करते थे।
एक बार एक ऊंट अपने साथियों से बिछुड़कर इस जंगल में आ गया, इस घने जंगल में उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। प्यास और भूख से बेहाल ऊंट का बुरा हाल हो रहा था। वह सोच रहा था कि कहां जाए, किधर जाए दूर-दूर तक उसे कोई अपना नजर नहीं आ रहा था।
इत्तफाक से उस ऊंट पर शेर के इन तीनों मित्रों की नजर पड़ गई। गीदड़ तो वैसे ही चालाकी और धूर्तता में अपना जवाब नहीं रखता, उसने इस अजनबी मोटे-ताजे ऊंट को जंगल में अकेला भटकते देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। उसने भेड़िये और कौए से कहा, ‘‘दोस्तो ! यदि शेर इस ऊंट को मार दे तो हम कई दिन तक आनंद से बैठकर अपना पेट भर सकते हैं। कितने दिन आराम से कट जाएंगे, हमें कहीं भी शिकार की तलाश में नहीं भटकना पड़ेगा।’’
भेड़िये और कौए ने मिलकर गीदड़ की हां में हां मिलाई और उसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हुए बोले, ‘‘वाह... वाह... दोस्त, क्या विचार सूझा है, इस परदेसी ऊंट को तो शेर दो मिनट में मार गिराएगा, वह इसका सारा मांस कहां खा पाएगा, बचा-खुचा सब माल तो अपना ही होगा।’’
गीदड़, भेड़िया और कौआ कुटिलता से हंसने लगे। उन तीनों के मन में कूट-कूटकर पाप भरा हुआ था। तीनों षड्यंत्रकारी मिलकर अपने मित्र शेर के पास पहुंचे और बोले, ‘‘आज हम आपके लिए एक खुशखबरी लेकर आए हैं।’’
‘‘क्या खुशखबरी है मित्रो, शीघ्र बताओ।’’ शेर ने कहा।
‘‘महाराज ! हमारे जंगल में एक मोटा-ताजा ऊंट आया हुआ है। शायद वह काफिले से बिछुड़ गया है और अपने साथियों के बिना भटकता फिर रहा है। यदि आप उसका शिकार कर लें तो आनंद आ जाए। आह ! क्या मांस है उसके शरीर पर। मांस से भरा पड़ा है उसका शरीर। देखा जाए तो अपने जंगल में मांस से भरे शरीर वाले जानवर हैं ही कहां ? केवल हाथियों के शरीर ही मांस से भरे रहते हैं, मगर हाथी अकेले आते ही कहां हैं, जब भी आते हैं, झुंड के झुंड, उन्हें मारना कोई सरल बात नहीं।’’
शेर ने उन तीनों की बात सुनी और फिर अपनी मूंछों को हिलाते हुए गुर्राया, ‘‘ओ मूर्खो ! क्या तुम यह नहीं जानते कि हम इस जंगल के राजा हैं। राजा का धर्म है न्याय करना, पाप और पुण्य के दोषों तथा गुणों का विचार करके पापी को सजा देना, पूरी प्रजा को सम्मान की दृष्टि से देखना। मैं भला अपने राज्य में आए उस ऊंट की हत्या कैसे कर सकता हूं ? घर आए किसी भी मेहमान की हत्या करना पाप है, इसलिए तुम जाकर इस मेहमान को सम्मान के साथ हमारे पास लेकर आओ।’’
शेर की बात सुनकर उन तीनों को बहुत दुख हुआ, उन तीनों ने भविष्य के कितने सपने देखे थे, खाने का कई दिन का प्रबंध, ऊंट का मांस... सब कुछ इस शेर ने चौपट कर दिया था। यह कैसा मित्र था, जो पाप और पुण्य के चक्कर में पड़कर अपना स्वभाव भूल गया? वे मजबूर थे, क्योंकि उन्हें पता था कि शेर की दोस्ती छोड़ते ही उन्हें कोई नहीं पूछेगा, ‘मरता क्या न करता’ वाली बात थी।
तीनों भटकते हुए ऊंट के पास पहुंचे और उसे शेर का संदेश दिया।
ऊंट हालांकि जंगल में भटकते-भटकते दुखी हो गया था। थकान के कारण उसका बुरा हाल हो रहा था, इस पर भी जब उसने यह सुना कि शेर ने उसे अपने घर बुलाया है तो वह डर के मारे कांप उठा, क्योंकि उसे पता था कि शेर मांसाहारी जानवर है और जंगल का राजा भी, उसके सामने जाकर भला सलामती कहां ? उसकी आँखों में मौत के साये थिरकने लगे।
उसने सोचा कि शेर की आज्ञा न मानकर यदि मैं न जाऊं, तब भी जीवन खतरे में है। बाघादि दूसरे जानवर मुझे खा जाएंगे, इससे तो अच्छा है कि शेर के पास ही चलूं। क्या पता वह सचमुच दोस्ती करके अभयदान दे दे। यही सोचकर वह उनके साथ चल दिया। शेर ने घर आए मेहमान का मित्र की भांति स्वागत किया, तो ऊंट का भी भय जाता रहा। उसने अपनी शरण में पनाह देने का उसे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
शेर ने कहा, ‘‘मित्र ! तुम बहुत समय से भटकने के कारण काफी थक गए हो। अतः तुम मेरी गुफा में ही आराम करो, मैं और मेरे साथी तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करके लाते हैं।’’
मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। उसी दिन शेर और हाथी में एक वृक्ष की पत्तियों को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ जिससे दोनों ही बुरी तरह जख्मी हो गए।
एक बार एक ऊंट अपने साथियों से बिछुड़कर इस जंगल में आ गया, इस घने जंगल में उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। प्यास और भूख से बेहाल ऊंट का बुरा हाल हो रहा था। वह सोच रहा था कि कहां जाए, किधर जाए दूर-दूर तक उसे कोई अपना नजर नहीं आ रहा था।
इत्तफाक से उस ऊंट पर शेर के इन तीनों मित्रों की नजर पड़ गई। गीदड़ तो वैसे ही चालाकी और धूर्तता में अपना जवाब नहीं रखता, उसने इस अजनबी मोटे-ताजे ऊंट को जंगल में अकेला भटकते देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। उसने भेड़िये और कौए से कहा, ‘‘दोस्तो ! यदि शेर इस ऊंट को मार दे तो हम कई दिन तक आनंद से बैठकर अपना पेट भर सकते हैं। कितने दिन आराम से कट जाएंगे, हमें कहीं भी शिकार की तलाश में नहीं भटकना पड़ेगा।’’
भेड़िये और कौए ने मिलकर गीदड़ की हां में हां मिलाई और उसकी बुद्धि की प्रशंसा करते हुए बोले, ‘‘वाह... वाह... दोस्त, क्या विचार सूझा है, इस परदेसी ऊंट को तो शेर दो मिनट में मार गिराएगा, वह इसका सारा मांस कहां खा पाएगा, बचा-खुचा सब माल तो अपना ही होगा।’’
गीदड़, भेड़िया और कौआ कुटिलता से हंसने लगे। उन तीनों के मन में कूट-कूटकर पाप भरा हुआ था। तीनों षड्यंत्रकारी मिलकर अपने मित्र शेर के पास पहुंचे और बोले, ‘‘आज हम आपके लिए एक खुशखबरी लेकर आए हैं।’’
‘‘क्या खुशखबरी है मित्रो, शीघ्र बताओ।’’ शेर ने कहा।
‘‘महाराज ! हमारे जंगल में एक मोटा-ताजा ऊंट आया हुआ है। शायद वह काफिले से बिछुड़ गया है और अपने साथियों के बिना भटकता फिर रहा है। यदि आप उसका शिकार कर लें तो आनंद आ जाए। आह ! क्या मांस है उसके शरीर पर। मांस से भरा पड़ा है उसका शरीर। देखा जाए तो अपने जंगल में मांस से भरे शरीर वाले जानवर हैं ही कहां ? केवल हाथियों के शरीर ही मांस से भरे रहते हैं, मगर हाथी अकेले आते ही कहां हैं, जब भी आते हैं, झुंड के झुंड, उन्हें मारना कोई सरल बात नहीं।’’
शेर ने उन तीनों की बात सुनी और फिर अपनी मूंछों को हिलाते हुए गुर्राया, ‘‘ओ मूर्खो ! क्या तुम यह नहीं जानते कि हम इस जंगल के राजा हैं। राजा का धर्म है न्याय करना, पाप और पुण्य के दोषों तथा गुणों का विचार करके पापी को सजा देना, पूरी प्रजा को सम्मान की दृष्टि से देखना। मैं भला अपने राज्य में आए उस ऊंट की हत्या कैसे कर सकता हूं ? घर आए किसी भी मेहमान की हत्या करना पाप है, इसलिए तुम जाकर इस मेहमान को सम्मान के साथ हमारे पास लेकर आओ।’’
शेर की बात सुनकर उन तीनों को बहुत दुख हुआ, उन तीनों ने भविष्य के कितने सपने देखे थे, खाने का कई दिन का प्रबंध, ऊंट का मांस... सब कुछ इस शेर ने चौपट कर दिया था। यह कैसा मित्र था, जो पाप और पुण्य के चक्कर में पड़कर अपना स्वभाव भूल गया? वे मजबूर थे, क्योंकि उन्हें पता था कि शेर की दोस्ती छोड़ते ही उन्हें कोई नहीं पूछेगा, ‘मरता क्या न करता’ वाली बात थी।
तीनों भटकते हुए ऊंट के पास पहुंचे और उसे शेर का संदेश दिया।
ऊंट हालांकि जंगल में भटकते-भटकते दुखी हो गया था। थकान के कारण उसका बुरा हाल हो रहा था, इस पर भी जब उसने यह सुना कि शेर ने उसे अपने घर बुलाया है तो वह डर के मारे कांप उठा, क्योंकि उसे पता था कि शेर मांसाहारी जानवर है और जंगल का राजा भी, उसके सामने जाकर भला सलामती कहां ? उसकी आँखों में मौत के साये थिरकने लगे।
उसने सोचा कि शेर की आज्ञा न मानकर यदि मैं न जाऊं, तब भी जीवन खतरे में है। बाघादि दूसरे जानवर मुझे खा जाएंगे, इससे तो अच्छा है कि शेर के पास ही चलूं। क्या पता वह सचमुच दोस्ती करके अभयदान दे दे। यही सोचकर वह उनके साथ चल दिया। शेर ने घर आए मेहमान का मित्र की भांति स्वागत किया, तो ऊंट का भी भय जाता रहा। उसने अपनी शरण में पनाह देने का उसे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।
शेर ने कहा, ‘‘मित्र ! तुम बहुत समय से भटकने के कारण काफी थक गए हो। अतः तुम मेरी गुफा में ही आराम करो, मैं और मेरे साथी तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करके लाते हैं।’’
मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। उसी दिन शेर और हाथी में एक वृक्ष की पत्तियों को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ जिससे दोनों ही बुरी तरह जख्मी हो गए।
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